Wednesday, August 20, 2008

इष्टोपदेश गाथा ८ ( अगस्त १७, २००८ )

यद्यपि शरीर, घर, धन, स्त्री, पुत्र आदि सब अन्य स्वाभाव को लिए आत्मा से भिन्न हैं , परन्तु मोहनीय कर्म के जाल में फंसकर जीव इन्हे आत्मा के समान मानता है शरीर का सम्बन्ध निकट है द्रव्य कर्म का भी निकट सम्बन्ध है पहले अपने से भिन्न पदार्थ को भिन्न समझना - घर , कार , पुत्र अत्यन्त भिन्नता लिए हुए
यह जीव चारित्र मोहनीय रूपी शराब के वश में इन सबको अपना मान बैठता है मिथ्या द्रष्टि जीव परमार्थ से अपना मानता है और सम्यक द्रष्टि व्यवहार से अपना मानता है और परमार्थ से यह सब निमित नैमितिक सम्बन्ध रूप मानता है
द्रव्य में अनंत गुण व पर्याय है वास्तु स्वरुप से यह अपने ज्ञान में बैठना चाहिए दो द्रव्य पास में रहने से एकसे या एक दुसरे के नहीं होते
कर्म रूप पुदगल का भी कोई सम्बन्ध नहीं रहा जाता सिर्फ़ जब तक सम्बन्ध रहता है तब तक संसार अवस्था बनी रहती है जब हरीर ही अपना नहीं तो शरीर से उत्पन्न हुआ अपना कैसे हो सकता है लेकिन क्योंकि इनसे अपना उपकार रूप भासित होता है उसे हम अपना कहते हैं परन्तु शरीर से उत्पन्न हुआ मल हमारा प्रयोजन सिद्ध नहीं होने से अपन ममत्व नहीं करते यथार्थ से पत्नि का जीव और शरीर दोनों अलग हैं इसी प्रकार घर, धन आदि भी न्यारे हैं जैसे दूध और पानी अलग हैं यह अपने ज्ञान में है सो अग्नि पर रख कर अलग करते हैं
मेरी चीज होगी वह कभी जुदा नहीं होगी ऐसा ज्ञानी पुरूष जानते हैं मोही पुरूष ऐसा नहीं मानता जो जैसा है उसे वैसा नहीं मानना मोहनीय कर्म है व्यहार से शरीर को अपना कहते हैं क्योंकि आत्मा का उससे एक अवगाह सम्बन्ध है स्त्री, पुत्रस आदि का संयोग से सम्बन्ध होने से हम इन्हे अपना कहते हैं यथार्थ में हम जानते हैं की ये सब भिन्न हैं इसी प्रकार घर, गाडी आदि का भी संयोगवश सम्बन्ध होने से इन्हे मोहवश अपना कहते हैं जैसे कोई व्यक्ति शराब नहीं पिया हो तो पत्नि को पत्नि और माता को माता कहता है और शराब पीने पर कुछ का कुछ कहता है इसी प्रकार मोह रुपी शराब के नशे में जीव सब को अपना मानता है इन सब से अपने प्रति प्रथक नहीं होने देना चारित्र मोहनीय का कार्य है इनको प्रथक देखने के लिए दर्शन मोहनीय का त्याग करना होगा मूढ़ प्राणी मिली चीज को एकसा मानता है , जो उसको अलग जानता है वो ज्ञानी कहा जाता है जैसे हंस जो की दूध में से पानी को अलग कर देता है उसे ज्ञानी कहा जता है इसके लिए हमें दर्शन मोहनीय का त्याग करना होगा

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