प्रश्न: मंगलाचरण क्या है?
उत्तर: मंगल की प्राप्ति के लिये जो आचरण विशेष किया जाता है, उसे मंगलाचरण कहते हैं।
प्रश्न: मंगलाचरण क्यों?
उत्तर:
- ग्रंथ की निर्विघ्न समाप्ति
- पुण्य की प्राप्ति
- पाप का नाश: वक्ता का दानान्तराय, श्रोता का लाभान्तराय
- नास्तिकता का परिहार
- शिष्टाचार का पालन
प्रश्न: आस्तिकता क्या?
उत्तर: जो जैसा है, उसे वैसा स्वीकार करना, आस्तिकपने का लक्षण है।
प्रश्न: नास्तिकता क्या?
उत्तर: जो जैसा है, उसे वैसा नहीं स्वीकार करना, नास्तिकपने का लक्षण है।
प्रश्न: सिद्ध भगवान को मंगलाचरण मे नमस्कार क्यों किया है?
उत्तर: क्योंकि यह अध्यातम ग्रन्थ है। इसी प्रकार समयसार मे भी मंगलाचरण मे भी सिद्धो को नमस्कार किया गया है।
प्रश्न: इष्ट का अर्थ क्या है, और इस ग्रन्थ का नाम इष्टोपदेश क्यों लखा गया है?
उत्तर: जिससे सुख की प्राप्ति हो, दुख का नाश हो - वह प्रयोजन है, तथा जिससे प्रयोजन की सिद्धी हो वह इष्ट है।
प्रश्न: अगर मंगलाचरण ना करे तो कोई नुकसान है क्या?
उत्तर: लाभान्तराय का क्षयोपशम होता है। कृतज्ञतापने की अभिव्यक्ति के लिये।
प्रश्न: द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म क्या हैं?
उत्तर: द्रव्यकर्म = kaarmic particles
भावकर्म= kaarmic particles से आत्मा मे विकारी भाव
नोकर्म= (नो = किंचित)
१) किंचित कर्म है- किंचित effect है आत्मा पर।
२) ४ प्रकार के कर्म शरीर के बिना अपना फ़ल नहीं दिखा सकते, इसीलिये शरीर को नोकर्म कहा है।
३) जो अपने विकारी भावो के प्रकट होने मे साधक-बाधक रूप बनते हैं, उन्हे भी किंचित कर्म कहते हैं।