Sunday, July 27, 2008

Pravachan 10

प्रश्न: इस कथन का क्या तात्पर्य है" "इस आत्मा को अरहंत और सिद्ध के रूप में चिंतवन किया जाय"

उत्तर:

जीव =

  • सामान्य जीव: जिसमें चेतन शक्ति हो, सो सामान्य जीव है।
  • विशेष जीव: जिसमें उपयोग है। इसमें संसारी, मुक्त जीव आते हैं। इन्हे १२ प्रकार का उपयोग होता है: ८ ज्ञानोपयोग, ४ दर्शनोपयोग
    • शुद्धोपयोग = केवलज्ञानोपयोग, केवलदर्शनोपयोग
    • अशुद्धोपयोग = सु-मतिज्ञानोपयोग, सु-श्रुतज्ञानोपयोग, सु-अवधिज्ञानोपयोग,मनःपर्ययज्ञानोपयोग,कु-मतिज्ञानोपयोग, कु-श्रुतज्ञानोपयोग, कु-अवधिज्ञानोपयोग,चक्षुदर्शनोपयोग,अचक्षुदर्शनोपयोग,अवधिदर्शनोपयोग
    • दूसरी परिभाषा:
      • शुद्धोपयोग = शुद्ध भाव
      • अशुद्धोपयोग = अशुद्ध भाव
    • तीसरी परिभाषा
      • शुद्धोपयोग = शुद्ध की और होने वाले उपयोग को शुद्धोपयोग कहते हैं। (प्रवचनसार का सन्दर्भ)
      • अशुद्धोपयोग = अशुद्ध की और होने वाले उपयोग को अशुद्धोपयोग कहते हैं।

Notes: ३ भाव हैं, जो अध्यात्म ग्रन्थो मे लिये जाते हैं:

  1. अशुद्ध = शुभाशुभ भाव।
  2. शुद्ध = शुभाशुभ से रहित परिणाम
  3. सर्वविशुद्ध भाव = निरन्तर धारा प्रवाहित पारिणामिक भाव। इसमें चेतन शक्ति को लिया जाता है।