Sunday, January 18, 2009

18th Janualy Swadhyaya

Short Summary:

श्लोक २२: "मन की एकाग्रता" को समझने से पहले मन को समझना आवश्यक है। यहां भावमन विवक्षित है। भावमन = ज्ञान की वो दशा जिससे जीव अच्छे बुरे क निर्णय कर सकता है। ये भावमन स्वभाव से चंचल नहीं होता। क्योंकि मन के साथ मे जीव के अन्दर राग-द्वेष की परिणति होती है, जिससे वो नाना ज्ञेयो मे घूमता है।
ध्यान = ज्ञान की एकाग्र दिशा
अनुप्रेक्षा = इसमें ज्ञान की चंचलता चलती है।

Sunday, January 11, 2009

11 Jan Swadhyaya, Sutra 21 last teeka, page 24

ज्ञान = जिससे जानते हैं
ज्ञेय = जिसे जान रहे हैं
ज्ञाता = जो जान रहा है
ज्ञप्ति = जानने की क्रिया

ज्ञान के दो कार्य हैं = १) जानना २) वेदन करना (सुख, दुख सहित जानना = वेदन)

जीव मे दो शक्ति: वेदन, जानना

When we say jeev is upayog wala- then it is meant jaanana swabhaav
When we say jeev is anubhav wala- then it is meant vedan swabhaav

प्रश्न: What is स्वसंवेदन?
उत्तर: स्वसंवेदन = आत्मानुभव = आत्मदर्शन

संवेदन के दो भेद:
१) स्वसंवेदन = स्व को स्वरूप संवेदन करना।
२) परसंवेदन = पर को स्वरूप संवेदन करना। यह मिथ्यात्व के साथ होता है।


स्वसंवेदन के दो भेद:
१) सराग स्वसंवेदन = इन्द्रिय सुख का अनुभव
२) वीतराग स्वसंवेदन = इन्द्रिय सुख से हटके साधक, शुभ और अशुभ से रहित होकर के, अपने अतिन्द्रिय स्वभाव मे स्थित होता है।

मै मनुष्य हुं = मनुष्यपने की अनुभूति वाला है।
मै निरोगी मनुष्य हुं = निरोगी जीव ही ऐसा अनुभव कर सकता है

स्वानुभव (स्वसंवेदन ज्ञान): दो प्रकार से
१) लब्धिरूप से = स्वानुभूत्यावर्णी कर्म का क्षयोपक्षम होने पर, जीव के स्वसंवेदन की शक्ति प्रकट हो जाना।
२) उपयोगरूप से = जब स्वानुभव होता है।

Question: What is 'स्व’?
Answer: चेतन लक्षण धारण करने वाला सामान्य धर्मी जीव

There are three things in Vastu = द्रव्य, गुण, पर्याय। A saadhak can not comprehend the entire soul. But he knew it by 'Anumaan gyaan'. And saadhak gets Nirahul dashaa by experiencing its own soul.

As we experience lemon taste, we say 'we experienced lemon', but we just experienced the 'Paryaay' of its 'rasa guna'. Similarly the complete soul can be known by 'Pratyaksha Gyaani'. And a 'Paroksha Gyaan' experiences the Aanad guna paryaay of soul.

When he does Nirakul aanad, then सामन्य धर्मी गौण हो जाता है। Initially he takes अवलंबन of knowing सामान्य धर्मी आत्मा, और फ़िर निरकुल सुख को अनुभव करता है।