Sunday, January 18, 2009

18th Janualy Swadhyaya

Short Summary:

श्लोक २२: "मन की एकाग्रता" को समझने से पहले मन को समझना आवश्यक है। यहां भावमन विवक्षित है। भावमन = ज्ञान की वो दशा जिससे जीव अच्छे बुरे क निर्णय कर सकता है। ये भावमन स्वभाव से चंचल नहीं होता। क्योंकि मन के साथ मे जीव के अन्दर राग-द्वेष की परिणति होती है, जिससे वो नाना ज्ञेयो मे घूमता है।
ध्यान = ज्ञान की एकाग्र दिशा
अनुप्रेक्षा = इसमें ज्ञान की चंचलता चलती है।

No comments: