Wednesday, May 21, 2008

Lecture 1: Mangalacharan

Recorded lecture is at : http://cid-2ab80bd7158552ef.skydrive.live.com/browse.aspx/Ishtopdesh


मंगलाचरण करने के कारण:

  1. ग्रंथ की निर्विघ्न समाप्ति
  2. पुण्य की प्राप्ति
  3. पाप का नाश: वक्ता का दानान्तराय, श्रोता का लाभान्तराय
  4. नास्तिकता का परिहार
परमात्मा:

१. कारण परमात्मा: हर जीव मे जो परमात्मा होने की सामर्थ्य है, उसे कारण परमात्मा कहते हैं। इसके दो भेद हैं:

_ १.१ त्रिकाली कारण परमात्मा: निगोद से सिद्ध परमात्मा तक सबमे परमात्मा होने की शक्ति है। ऐसी शक्ति के धारक जीवो को त्रिकाली कारण परमात्मा कहते हैं।

_ १.२ क्षणिक कारण परमात्मा: कार्य परमात्मा बनने के लिये जो निश्चय रत्नत्रय रूप शुद्धोपयोग अवस्था चाहिये, उससे परिणित आत्मा को क्षणिक कारण परमात्मा कहते हैं।
आगमभाषा में, द्वितिय शुक्लध्यान के धारक जीवो को क्षणिक कारण परमात्मा के नाम से जाना जाता है।

२. कार्य परमात्मा: अरिहंत, सिद्ध प्रभु

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