2nd Stanza of Ishtopdesh Ji: (Page 2-3 from the scripture)
दो प्रकार के कारण हैं:
उत्पादक कारण = कार्य की उत्पादक सामग्री
सूचक कारण = जो कार्य होने की सूचना दे। जैसे धूंआ, अग्नि के लिये सूचक कारण है।
उत्पादक कारण के दो भेद हैं:
१. उपादान कारण = जो कार्य रूप परिणमित होता है अथवा जिसमें कार्य होता है।
२. निमित्त कारण = जो कार्य रूप परिणमित नहीं होता, मगर कार्य में सहयोगी होता है
उदाहरण: सम्यगदर्शन कार्य का उपादान कारण जीव स्वयं है, तथा निमित्त कारण देव, शास्त्र, गुरु, दर्शन मोह का क्षयोपक्षम आदि हैं।
उपादान कारण भी दो प्रकार के है:
१.१ त्रिकाली उपादान कारण: जिसमे कार्य रूप परिणमित होने की हमेशा शक्ति पायी जाती है।
१.२ क्षणिक उपादान कारण: कार्य होने लिये से पहले जो कारण है। जैसे मोक्ष के लिये व्यव्हार रत्नत्रय, और निश्चय रत्नत्रय क्षणिक उपादान कारण हैं। क्षणिक उपादान कारण भी दो प्रकार का होता है:
१.२.१. समर्थ क्षणिक उपादान कारण: जिसके होने पर कार्य हो ही हो, और जिसके बिना कार्य ना हो। जैसे सम्यगदर्शन के लिये करण लब्धि।
१.२.२. असमर्थ क्षणिक उपादान कारण: जिसके होने पर कार्य हो भी सकता है, नहीं भी। मगर इसके बिना कार्य नहीं होगा। जैसे सम्यगदर्शन के लिये चार लब्धियां असमर्थ उपादान कारण है।
निमित्त कारण भी दो प्रकार के है:
२.१. समर्थ निमित्त कारण: जिसके होने पर कार्य हो ही हो, और जिसके बिना कार्य ना हो। जैसे सम्यगदर्शन के लिये दर्शन मोहनीय का उपशम, क्षय या क्षयोपक्षम आदि समर्थ निमित्त कारण हैं।
२.२. असमर्थ निमित्त कारण: जिसके होने पर कार्य हो भी सकता है, नहीं भी। मगर इसके बिना कार्य नहीं होगा। जैसे सम्यगदर्शन के लिये देव, शास्त्र, गुरु आदि असमर्थ निमित्त कारण है।
प्रश्न: प्रद्युम्न Uncle: एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं कर्ता - इसका क्या मतलब है?
उत्तर:
कर्ता की परिभाषा: यः परिणमति सः कर्ता। जो परिणमन करता है, वही कर्ता है। जो परिणमन वह कार्य है।
जैसे: मैं शुभ भाव कर रहा हुं और उसमे पण्डित जी सहयोगी हैं। अब क्या पण्डित जी मेरे शुभ भाव का कर्ता हैं? नहीं, क्योंकि - ’जो परिणमन करता है, वही कर्ता है’- इसलिये, पण्डित जी कर्ता नहीं है, निमित्त है। शुभ भाव का कर्ता तो मैं ही हूं।
अब कर्ता का प्रयोग भी दो तरीके से होता है:
१. जैसा की उपर बताया है।
२. निमित्त को भी उपचार से कर्ता कह दिया जाता है। जैसे: पण्डित जी मेरे शुभ भाव के कर्ता हैं। मगर ये उपचार कथन है, जो लोकव्यवहार मे बहुलता से प्रयोग किया जाता है।
अब देखे: देव, शास्त्र, निमित्त क्या मेरे कर्ता है? - नहीं वे निमित्त हैं।
Possible misinterpretation: "एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं कर्ता" - इसका गलत अर्थ कभी भूल से ऐसा कर लिया जाता है, कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का सहयोगी नहीं होता।
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